उत्तराखंड राज्य के आभूषण तथा परिधान बहुत आकर्षक और मनमोहक होते हैं। यहां परिधान व आभूषण पूरे भारत में प्रचलित हैं। यहां की बोलियां भी बहुत मनमोहक है। यहां के लोगों की मिटी वाणी में उनकी बोली बहुत मधुर लगती है।
उत्तराखंड राज्य में अधिकतम गढ़वाली तथा कुमाऊनी लोग रहते है इसीलिए लिए यहां दो प्रकार के परिधान तथा आभूषण होते हैं।
आभूषण
सिर के लिए : शिशफूल, मांगटीका, सुहाग बिंदी, बंदी।
कानों के लिए : मूंदड़ा, बाली, कुंडल, कर्णफूल, तुग्यल, बुजनी (पुरुष कुंडल)।
नाक के लिए : नथ (नथुली), बुलांक, फुल्ली।
गले के लिए : गुलोबंद, लाकेट, हंसुली (सूत), चरयों, कंठी माला, तिलहरी, चन्द्रहार।
हाथ के लिए : धागुली, गोखले, कड़ा, पौजी, अंगूठी।
कमर के लिए : कमर ज्योड़ी, करधनी, तगड़ी।
पैरों के लिए : बिछुवा, झांवर, झिवरा, इमरती, पौंटा
अमरतीतार , पाजेब।
प्रमुख परिधान
गढ़वाली पुरुषों के परिधान - धोती, चूड़ीदार पायजामा, कुर्ता, पगड़ी, मिरजई, सफेद टोपी, मोरी, गुलबंद, अचकन आदि।
गढ़वाली बच्चो के परिधान - झगुली, घाघरा, कोट, चूड़ीदार पायजामा, संतरास।
गढ़वाली महिलाओं के परिधान : आंगडी, घाघरा, गाती, धोती,
पिचोड़ा।
कुमाऊनी पुरुषों के परिधान - धोती, पायजामा, सुराव, कोट, कुर्ता, भोटू, कमीज़, मिरजई, टांक, टोपी।
कुमाऊनी महिलाओं के परिधान - घाघरी, आंगडा(चोली), धोती, पिचोड़ा आदि।
कुमाऊनी बच्चो के परिधान - झगूली(लंबी फ्रोक), झगुल कोट, सन्तरास।
प्रमुख बोलियां
गढ़वाली बोली : गढ़वाली का विकास दरद, खस, पैचाशी व प्राकृत से हुआ है। कुछ विद्वानों का मानना है कि हिंदी कि भांति गढ़वाली का विकास शौरसैनी अपभ्रंश से हुआ है। डॉ• ग्रियसर्न ने 8 भागों में - श्रीनगरी, नागपुरिया, दसॉल्या, बधानी, राठी, मांझ, कुमैयां, सलानी एवं टिहरयाली में विभक्त किया है।
गढ़वाली क्षेत्र की अन्य बोली - खड़ी हिन्दी, जौनसारी, भोटिया।
कुमाऊनी बोली - कुमाऊनी का विकास दरद, खस, पैचासी व प्राकृत से हुआ है। हिंदी की भांति कुमाऊनी का विकास शौरसैनी अपभ्रंश से हुआ है। वैज्ञानिक त्रिलोचन पांडे ने चार वर्गों में तथा 12 प्रमुख बोलियों में निर्धारित की है।
पूर्व कुमाऊनी वर्ग : कुमय्या, सौर्यालि, सोराली, अस्कोटी।
पश्चिमी कुमाऊनी वर्ग : खस पराजिया, पछाई, फालदा कोटि, चौगखिर्या, गंगोई, दनपुरिया।
उत्तर कुमाऊनी वर्ग : झौहारी इस पर तिब्बती भाषा का प्रभाव है।
दक्षिणी कुमाऊनी वर्ग : नैनीताल कुमाऊनी या रचभैसी।
कुमाऊं क्षेत्र की अन्य बोली : मईकुमैया, गोरखाली बोली, भावरी, शौका, राजी, बौकसाडी पंजाबी, बांग्ला।
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