केदारनाथ धाम उत्तराखंड के चार धामों में से एक है। यहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। यहां का सौंदर्य श्रद्धालुओं तथा पर्यटकों को बहुत मनमोहक लगता है।
2011 की जनगणना के अनुसार केदारनाथ की कुल जनसंख्‍या 612 है।
केदारनाथ समुद्र तल से 11,746 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदाकिनी नदी के उद्गगम स्‍थल के समीप है। यमुनोत्री से केदारनाथ के ज्‍योतिर्लिंग पर जलाभिषेक को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। वायुपुराण के अनुसार भगवान विष्‍णु मानव जाति की भलाई के लिए पृथ्वि पर निवास करने आए। उन्‍होंने बद्रीनाथ में अपना पहला कदम रखा। इस जगह पर पहले भगवान शिव का निवास था। लेकिन उन्‍होंने नारायण के लिए इस स्‍थान का त्‍याग कर दिया और केदारनाथ में निवास करने लगे। इसलिए पंच केदार यात्रा में केदारनाथ को अहम स्‍थान प्राप्‍त है। साथ ही केदारनाथ त्‍याग की भावना को भी दर्शाता है।
यह वही जगह है जहां आदि शंकराचार्य ने बत्तीस वर्ष की आयु में समाधि में लीन हुए थे। इससे पहले उन्‍होंने वीर शैव को केदारनाथ का रावल (मुख्‍य पुरोहित) नियुक्‍त किया था। वर्तमान में केदारनाथ मंदिर 337वें नंबर के रावल द्वारा उखीमठ, जहां जाड़ों में भगवान शिव को ले जाया जाता है, से संचालित हो रहा है। इसके अलावा गुप्‍तकाशी के आसपास निवास करनेवाले पंडित भी इस मंदिर के काम-काज को देखते हैं। प्रशासन के दृष्टिकोण इस स्‍थान को इन पंडितों के मध्‍य विभिन्‍न भागों में बांट दिया गया है। ताकि किसी प्रकार की परेशानी पैदा न हो।
केदारनाथ मंदिर न केवल आध्‍यात्‍म के दृष्टिकोण से वरन स्‍थापत्‍य कला में भी अन्‍य मंदिरों से भिन्‍न है। यह मंदिर कात्‍युरी शैली में बना हुआ है। यह पहाड़ी के चोटि पर स्थित है। इसके निर्माण में भूरे रंग के बड़े पत्‍थरों का प्रयोग बहुतायत में किया गया है। इसका छत लकड़ी का बना हुआ है जिसके शिखर पर सोने का कलश रखा हुआ है। मंदिर के बाह्य द्वार पर पहरेदार के रूप में नंदी का विशालकाय मूर्ति बना हुआ है।
केदारनाथ मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है - पहला, गर्भगृह। दूसरा, दर्शन मंडप, यह वह स्‍थान है जहां पर दर्शानार्थी एक बड़े से हॉल में खड़ा होकर पूजा करते हैं। तीसरा, सभा मण्‍डप, इस जगह पर सभी तीर्थयात्री जमा होते हैं। तीर्थयात्री यहां भगवान शिव के अलावा ऋद्धि सिद्धि के साथ भगवान गणेश, पार्वती, विष्‍णु और लक्ष्‍मी, कृष्‍ण, कुंति, द्रौपदि, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की पूजा अर्चना भी की जाती है।
केदारनाथ मंदिर के खुलने का समय निर्धारित नहीं रहता है। हर साल शिवरात्री की तिथि के अनुसार पंच पुरोहित के द्वारा उखीमठ में इस बात का फैसला किया जाता है कि मंदिर कब खुलेगी। मंदिर यामा द्वितीया या भाई दूज के दिन बंद हो जाता है। जाड़ों में मंदिर का द्वार बंद हो जाने के बाद वहां कोई नहीं रहता है। पंडा लोग गुप्‍तकाशी में और रावल उखीमठ में निवास करते हैं। मंदिर छह बजे पुर्वाह्न से दो बजे अपराह्न तक खुला रहता है। पुन: पांच से लेकर आठ बजे सायं तक मंदिर खुला रहता है।
केदारनाथ में विशेष पूजा का भी आयोजन किया जाता है। यह अमूमन सुबह चार से छह बजे तक होती है। लेकिन ज्‍यादा भीड़ होने पर आधी रात के बाद भी विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। दर्शानार्थी बीस वर्षों में एक बार होनेवाले विशेष पूजा के लिए भी अपनी व्‍यवस्‍था करवा सकते हैं। इसके लिए उनको भारतीय स्‍टेट बैंक, उखीमठ के नाम से अपेक्षित ड्राफ्ट गौरि माई मंदिर, उखीमठ, जिला-रूद्रप्रयाग, उत्‍तरांचल के नाम पर पोस्‍ट करना होता है।