बद्रीनाथ नर और नारायण पर्वतों के मध्‍य स्थित है, जो समुद्र तल से 10,276 फीट (3,133मी.) की ऊंचाई पर स्थित है। अलकनंदा नदी इस मंदिर की खूबसुरती में चार चांद लगाती है। ऐसी मान्‍यता है कि भगवान विष्‍णु इस स्‍थान ध्‍यनमग्‍न रहते हैं। लक्ष्‍मीनारायण को छाया प्रदान करने के लिए देवी लक्ष्‍मी ने बैर (बदरी) के पेड़ का रूप धारण किया। लेकिन वर्तमान में बैर का पेड़ तो बहुत कम मात्रा में देखने को मिलता है लेकिन बद्रीनारायण अभी भी ज्‍यों का त्‍यों बना हुआ है। नारद जो इन दोनों के अनन्‍य भक्‍त हैं उनकी आराधना भी यहां की जाती है।
कालांतर में जो मंदिर बना हुआ है उसका निर्माण आज से ठीक दो शताब्‍दी पहले गढ़वाल राजा के द्वारा किया गया था। यह मंदिर शंकुधारी शैली में बना हुआ है। इसकी ऊंचाई लगभग 15मीटर है। जिसके शिखर पर गुंबज है। इस मंदिर में 15 मूर्तियां हैं। मंदिर के गर्भगृह में विष्‍णु के साथ नर और नारायण ध्‍यान की स्थिति में विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण वैदिक काल में हुआ था जिसका पुनरूद्धार बाद में आदि शंकराचार्य ने 8वीं शदी में किया। इस मंदिर में नर और नारायण के अलावा लक्ष्‍मी, शिव-पार्व‍ती और गणेश की मूर्ति भी है।
भू-स्‍खलन के कारण यह मंदिर अक्‍सर क्षतिग्रस्‍त हो जाता है। इस वजह से इसका आधुनिकीकरण भी बार-बार किया गया है। लेकिन सिंह द्वार जो इस मंदिर का मुख्‍य द्वार भी है, इसके बन जाने के बाद इसकी खूबसूरती में चार चांद लग गया है। इस मंदिर के तीन भाग हैं- गर्भगृह, दर्शन मंडप (पूजा करने का स्‍थान) और सभा गृह (जहां श्रद्धालु एकत्रित होते हैं)। वेदों और ग्रंथों में बद्रीनाथ के संबंध में कहा गया है कि, 'स्‍वर्ग और पृथ्‍वी पर अनेक पवित्र स्‍थान हैं, लेकिन बद्रीनाथ इन सभी में अग्रगण्य है।'